One Nation One Election क्या है ?

One Nation One Election को लेकर जारी प्रयासों और विवादों के बावजूद, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है. इस लेख में, हम विचार करेंगे कि एक देश-एक चुनाव देश के लिए कितना फायदेमंद हो सकता है और कितना हानिकारक हो सकता है, इसके साथ ही यह भी देखेंगे कि इस पर किस प्रकार की चुनौतियाँ हैं।

One Nation One Election

‘One Nation One Election’ का प्रारंभिक प्रयोग भारत में 1952, 1957, 1962, और 1967 में हुआ था, जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ किए जाते थे। इसके बाद, राज्यों में कुछ विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर कराए गए, और यह परंपरागत हो गया।

चुनौतियाँ:

  1. संविधानिक संशोधन: एक देश-एक चुनाव को लागू करने के लिए, संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिससे विधानसभा के कार्यकाल को लोकसभा के साथ मेल करना होगा। यह प्रक्रिया संविधान में परिवर्तन करने की तरह निर्विघ्न नहीं हो सकती है, क्योंकि इसके लिए भी विधायिका संसद की अनुमति चाहिए।
  2. मतदान की व्यवस्था: ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए मतदान की व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता होगी। जिससे कि एक ही समय पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो सके, इसमें तय समय में ईवीएम और VVPAT मशीनों की बड़ी संख्या की आवश्यकता होगी।
  3. प्रशासनिक कठिनाइयाँ: एक साथ चुनाव करने से प्रशासनिक कठिनाइयाँ भी बढ़ सकती हैं। चुनावों की तैयारी, सुरक्षा की व्यवस्था, और निर्वाचन प्रक्रिया की व्यवस्था बड़ी स्थानीय और केंद्रीय सरकारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
  4. विकास पर प्रभाव: ‘एक देश-एक चुनाव’ के दौरान चुनावी प्रचार और आचार संहिता के पालन की चलने से विकास काम रुक सकता है, क्योंकि सरकार और उपायुक्तियां चुनाव की तैयारी में व्यस्त रहती हैं।

फायदे:

  1. खर्च कम होगा: एक देश-एक चुनाव से विभिन्न समय में होने वाले चुनावों के मुकाबले खर्च कम हो सकता है, जिससे सरकारों को बचत हो सकती है।
  2. वोटर्स की सहयोग: यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक देश-एक चुनाव से वोटर्स को एक साथ अपने राज्य और केंद्रीय सरकार का चयन करने का मौका मिलेगा, जिससे उनका साहस और भागीदारी मजबूत हो सकता है।

नुकसान:

  1. राज्यों की अनदेखी: एक देश-एक चुनाव के बारे में राज्यों की आपसी बहस और अनदेखी की संभावना है, क्योंकि यह राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के साथ मुकाबले करने की स्थिति में लाएगा।
  2. सामाजिक और राजनीतिक असमानता: ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए होने वाले बड़े चुनाव केवल बड़ी दलों के उम्मीदवारों को बढ़ावा दे सकते हैं और छोटे पार्टियों को कमजोर कर सकते हैं, जिससे समाजिक और राजनीतिक असमानता बढ़ सकती है।
  3. प्रजातंत्र के प्राकृतिक सिरके: प्रजातंत्र में चुनाव एक महत्वपूर्ण घड़ी होते हैं, और यह देश में जनभागीदारी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ‘एक देश-एक चुनाव’ के आने से यह प्राकृतिक सिरका कम हो सकता है, क्योंकि विभिन्न चुनावों के समय अलग-अलग राज्यों के नागरिकों को अलग-अलग बार में वोट डालने का मौका होता है।

निष्कर्ष:

‘एक देश-एक चुनाव’ का उद्देश्य खरगोश के साथ कछुआ दौड़ के समान है – दोनों का अपना मार्ग होता है और उनका अपना विजयी होता है। इसमें तय समय में सभी चुनाव होने का सुझाव देने वालों का तर्क होता है कि इससे चुनावी प्रक्रिया में सरलता और वितरण की प्रक्रिया में प्रशासनिक फायदा होगा, जबकि अन्य विचारक इसे नैतिक और राजनीतिक दृष्टि से असमर्थक मानते हैं।

‘एक देश-एक चुनाव’ को अच्छी तरह से समझने के लिए, हमें इसके फायदे और नुकसान को संतुलित दृष्टि से देखना होगा, और सरकार को इसके प्राथमिक उद्देश्य और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कैसे प्रयासरत काम करने की आवश्यकता है।

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